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काल तुझसे होड़ है मेरी

सौ बार पटखनी खाकर
मैं फिर एक बार
गर्द झाड़ कर
उठ खड़ा हुआ और
बोला फिर खम ठोंक कर
कोई बात नहीं
एक हार और सही!

सिविल सर्विसेज परीक्षाओं में असफल रहने के बाद मैं इलाहाबाद से लखनऊ आ गया। पैरेन्ट्स की कृपा से रहने व खाने की समस्या नहीं थी। कुछ महीनों तक अनेक समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन किया। मेरे अनेक आलेख (पूरे पेज व आधे पेज वाले) दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित हुए। किंतु पत्रकारिता जगत का माहौल रूचिकर न लगने के कारण 1996 में अपनी मां से मात्र 17000 रूपए लेकर व्यापार प्रारम्भ किया। जिसे मैंने उनको तीसरे महीने ही लौटा दिया।व्यापार में सफलता मिलने के बाद 2004 में हमने चिनहट इंडस्ट्रियल एरिया (टेल्को के पास) एक फैक्ट्री  स्थापित की।

                                                फैक्ट्री से जब कुछ और अधिक व्यावसायिक स्थिरता आई। तब लगा कि अब कुछ समाज के लिए किया जाए। प्लांट्स, पर्यावरण, प्रकृति आदि की ओर शुरू से रूझान था। इसीलिए 2014 में खरगापुर, गोमती नगर विस्तार में जन्नत नाम से एक नर्सरी  शुरू की। इसमें हम अधिकांश पौधे 10 रूपए या इससे कम में देते हैं। हमने जैविक बागवानी पर बल देने के लिए जैविक व शुद्ध प्लांट फूड भी उपलब्ध कराया। जन्नत नर्सरी में हमने आमजन को बढ़ते प्रदूषण से सचेत करने के लिए प्रदूषणरोधी पौधों (Air Purifier Plants) की स्थापना की। वहां आपको एक छत के नीचे 50 से भी अधिक प्रदूषणरोधी पौधे देखने को मिल सकते हैं साथ में उनसे संबंधित साहित्य भी। हमने धार्मिक व सांस्कृतिक पौधों (Religious and Cultural plants) की गैलरी भी बनाई। आपको लगभग सारे इस तरह के लोकप्रिय पौधे कम मूल्य पर मिल जायेंग

                                आम लोगों को बढ़ते प्रदूषण और बिगड़ते पर्यावरण के बारे मे जागरुक करने के लिए हमने दो  पुस्तकें लिखी Gardening Guide और Air Purifier Plants.

                                मैंने विद्यार्थी जीवन में चार किताबें लिखी थी जिनके अनेक संस्करण निकले थे। एक त्रैमासिक पत्रिका ‘‘प्रतियोगी’’ भी निकाली थी। जिसके दो अंक आये थे और जिसकी गुणवत्ता की चतुर्दिक प्रशंसा हुई थी। किंतु धनाभाव के कारण हम उसके और अंक नहीं निकाल सके। लखनऊ आकर मैंने अपनी इसी हॉबी को व्यवसाय बनाना चाहा था किंतु अनुकूल माहौल न पाकर व्यापार की ओर मुड़ गया था, किंतु मेरा यह शौक सदा जिंदा रहा और आज भी है। इसी कारण मैं लिखता रहा, पर्यावरण, उद्यान, पशुपालन, क़षि, प्रदूषण, शिक्षा आदि विषयों पर। पशुपालन व उद्यान पर अधिक लिखा क्योंकि मुझे लगता है कि इन दोनों में छोटी आय वाले लोग अधिक हैं और इनसे कम पूंजी लगाकर अच्छी आय अर्जित की जा सकती है।

                                                थोड़ा आर्थिक स्थायित्व आने के बाद मेरा यह पुराना शौक एक बार फिर जाग उठा। अब हमने अपने लेखन कार्यों के प्रकाशन के लिए एक संस्था People’s Participation Publication की स्थापना की है। हमारा मोटो है Nation Building Products है और हमारी tag line है।

देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।
अंधकार को क्यों धिक्कारे, अच्छा हो एक दिया जलाएं।।

सामान्यतया पब्लिकेशन को केवल किताबों से संबंधित मान लिया जाता है किंतु हमारा नारा है।

"More than just books"

किताबों के अतिरिक्त हम सिंथेटिक चार्ट, वॉल फ्रेम, बैनर, डेंगलर चार्ट, क्विक फिक्स डिस्प्ले आदि का भी प्रकाशन कर रहें हैं। हमारे प्रोडक्ट्स राष्ट्र निर्माण को सशक्त करेंगे। हम उत्पाद प्रेरित न बनकर उपभोक्ता प्रेरित बनना चाहते हैं। हम क्षणिक, खोखले, शब्दों और वायदों से नहीं, अपने ठोस कार्य से आपको प्रभावित करना चाहते हैं।

                                हमने पशुपालन, उद्यान, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, पर्यावरण, प्रदूषण, मिड डे मील, शिक्षा आदि पर हजारों सचित्र साहित्य वाला एक विशाल Literature Bank तैयार किया।  जिसे हम धीरे धीरे अपनी वेबसाइट पर डालेंगे ताकि यह सर्व सुलभ हो जाए।

                                                इसी कारण नेशन बिल्डिंग प्रो‍डक्‍ट  के नाम YouTube Channel भी चला रहें हैं जिसमें १०० से अधिक वीडियो उपलब्‍ध हैं । 

                                                हम सब कुछ सरकार पर डालने वाले समाज हैं जो की एक बड़ी विडंबना है और विकास में बाधक भी। हम उनसे आस व अपेक्षा कर रहे हैं जो कि एफिशिएंट व प्रोएक्टिव नहीं हैं और न ही उनकी सोच सकारात्मक है। उनके नीचे की जमीन हमेशा हिलती रहती है। सामान्यतया सरकारी लोगों में से अधिकांश उतना ही काम करना चाहते हैं जिससे उनकी नौकरी बची रहे या कुछ अतिरिक्त मिल रहा हो। क्या सरकार किसी बड़े बदलाव का वाहक बन सकती है?

                                                समाज को इसकी पहल करनी होगी, वही आधारभूत और टिकाऊ होगी। हम अपने मोहल्ले के नन्हें पार्क  के लिए भी सोचते हैं कि सरकार उसे मेंटेन करे जबकि हम रोज उसका उपयोग करते हैं। प्रदूषण, पर्यावरण, वृक्षारोपण, हरियाली आदि हम क्यों केवल सरकार पर ही आश्रित रहें? आखिरकार पर्यावरण को असंतुलित करने में हम भी तो भागीदार हैं (ए सी, फ्रिज, कम्प्यूटर आदि इलेक्ट्रिकल व इलेक्ट्रानिक्स गैजेट्स के द्वारा)।

                                                इस मामले में आई टी वाले बच्चे अच्छे हैं वो अपने रोजगार के लिए सरकार का मुंह नहीं देख रहे हैं। हमें जनता की सोच में परिवर्तन का प्रयास करना होगा ताकि वो सरकार पर ही निर्भर न बनी रहे बल्कि अपने दम पर भी कुछ करे। आज हमारा देश आई टी, फार्मा, स्पेसियल्‍टी  केमिकल्स आदि क्षेत्रों में विश्व में अग्रणी है और सबसे ज्यादा निर्यात से आय यहीं से आ रही है और इन क्षेत्रों में सरकार नहीं है।

                                एक बात बतानी है, हमारे नौजवान कहते हैं कि सरकारी नौकरी के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है क्योंकि हमारे पास धन नहीं है। मेरा निजी अनुभव है बिजनेस के लिए धन से अधिक सोच, संकल्प, श्रम और जज्बे की आवश्यकता होती है।

                                                असल में हम चाहते कि पहले दिन से हमें ए सी ऑफिस में pen pushing job मिल जाये। संघर्ष से बचना चाहते हैं। सुरक्षित दायरे से बाहर निकलने से डरते हैं। अकर्मण्य रहकर आज तक दुनिया में कोई बड़ा नहीं बना है।

No great person with easy past

                                                   असल में हम घर से निकलने से पहले सारे सिग्नल हरे होने का इंतजार करते हैं। कहीं मैं घोड़ा कुदाऊं कहीं मैं गिर न जाऊं ? परफेक्ट परिस्थितियां कभी नहीं मिलेगी। इसलिए उनका इंतजार बेवकूफी है।  हम काम शुरू होने के पहले ही सोचते हैं कि हमें अपनी मंजिल नजर आ जाये जबकि ऐसा होता नहीं है, जितना आगे दिखाई देता है, उतना आगे जाइए फिर और आपको आगे दिखाई देगा। आगे बढ़ते रहेंगे, तब मजिल करीब आती जाएगी। सही समय और अवसर किसी न किसी रूप में हमेशा आस-पास ही रहता है, बस सही नजर और जिगर चाहिए। अवसर बार बार नहीं आता, न ही प्रतीक्षा करता है, वह बर्फ के समान होता है इसलिए जब दिखाई दे झपट कर दोनों हाथ से पकड़ लीजिए। समस्या देखकर बिल्कुल न घबराएं, अक्‍सर अवसर समस्या की चादर ओढ़कर कर ही आता है। कई बार अवसर होते नहीं हैं, उनका निर्माण करना पड़ता है।

अंजाम उसके हाथ है आगाज करके देख
भीगे हुए परों से ही परवाज करके देख

कभी किसी को सफलता खतरा उठाए बिना मिली है क्या? सबसे बड़ा रिस्क कोई रिस्क न लेना है। जिंदगी में सबसे बड़ा खतरा यह होता है जब आप बहुत ज्यादा सतर्कता बरतने लगे। लंबे समय की खुशी के लिए क्या थोड़ी देर का दर्द बुरा है क्या? बॉडी बनानी है तो push up स्वयं लगाने होंगे, कोई और नहीं लगायेगा आपके बदले।

                                                कभी कभी लगता था कि मेरी योग्यता में कुछ कमी है लेकिन आज सफल होने के बाद लगता है कि मैं कितना गलत था। आप पल भर इस पर संदेह न करें, जितनी आवश्कता है उससे अधिक योग्य हैं आप।

                                                हमें बिजनेस शुरू करना चाहिए, साधन रास्ते में अपने आप मिलते जायेंगे। आप चलो तो सही रास्ते अपने आप बनते जायेंगे। पहली सीढ़ी पर खड़े होकर छत देखने की कोशिश न करें। जो शुरू में कठिन और बेतुका लगे वही काम का है। आपकी आज की कठिनाइयां कल की कहानियां बन सकती हैं।

                                माना कि पश्चिम की तरह हमारे यहां श्रम का महत्व नहीं है, फिर भी धीरे धीरे स्थिति बदल रही है। नई पीढ़ी को सरकार को ओर ताकना छोड़कर अपने पैरों पर खड़ा होना होगा,तभी हमारा देश विश्व में अग्रणी बन सकेगा।

Push yourself youngsters
because no one else is going to do it for you

अकेले चलने से डरिए मत क्योंकि जिनमें अकेले चलने का हौसला होता है, एक दिन उनके पीछे काफिला होता है। कुछ भाग्य का रोना रोकर बैठ जाते हैं जबकि भाग्य बार बार हमारे पुरूषार्थ की परीक्षा लेता है और इसे बदला भी जा सकता है। जब जरा सा प्रतिकूल समय आता है तब हम जल्दी घबरा जाते हैं, जीवन है ऊपर नीचे तो होगा ही। अच्छे दिनों में बौराएं नहीं और दुर्दिन में बौखलाए नहीं। बदलाव छोड़कर जीवन में और कुछ भी स्थायी नहीं है। अगर केवल आसानियां हों तो जिंदगी दुश्‍वार हो जाये।

                                                एक और कमी हमें दिखी कि हम पैसे पीछे दौड़ लगाते रहते हैं जबकि यदि हम काम के पीछे दौड़े तब पैसा आयेगा। पैसा अच्‍छे कार्य का बाय प्रोडक्‍ट है। हमें हर अच्छे काम को पूरे उमंग व जोश से करना चाहिए। जान लगा दो या जाने दो ।

                                                   अगर आप नयी चीजें सीखना बंद कर देंगें तो आप बड़ा काम अच्छी तरह से नहीं कर पाएंगें। जिज्ञासा और सीखने की ललक ग़ज़ब की होनी चाहिए।

If you are not upgrading, you are downgrading

                                                      कितना जानें उसका उतना फर्क़ नहीं पड़ता कितना क्रियान्वित किया, उसका फर्क़ पड़ता है.पर प्लानिंग बहुत जरूरी है, प्लानिंग में लगाया गया एक मिनट क्रियान्‍वयन के दस मिनट बचाता है.

                                                    कई बार हम अपने मन की नकारात्मकता को टांगने के लिए हुक ढूँढते रहते हैं। अपनी असफलता का ठीकरा दूसरों पर फोड़कर हम राहत महसूस करते हैं।

                                                बहुत कम लोगों के पास Midas Touch होता है यानी जिसे छू लेते हैं वह सोना हो जाता है। हम सबको कठोर परिश्रम करना पड़ता है। किसान जैसे खेत में एक साथ ढ़ेर सारे बीज डालता है जो न निकले उसकी परवाह नहीं करता, जो निकल आए उनका समय से पानी, खाद, दवा देकर उनका सतत ध्यान रखता है। फसल पकने का धैर्य पूर्वक इंतजार करता है, फिर उसे लाभ मिलता है।

                                अधिकांश लोग सफ़लता को जूस की मशीन समझते हैं कि इधर से फल डालें और उधर से जूस निकल आए और वो पीकर निकल लें। यह नहीं सोचते कि जिस फल का जूस वो पी रहे हैं, उसे पैदा करने में बागवान का कितना समय, श्रम, धन लगा है।

                                                हम संसाधन कम रहने पर बहुत बड़ा प्लान बना लेते हैं। अपने प्लान का गाना भी गाने लगते हैं जबकि काम शब्दों पर चढ़कर बोलता है। जीत रोज़ नहीं होती पर हर क्षण हम इस ओर चलें। बहानों को त्याग कर हर पल को श्रम से भर दें क्योंकि मेरा यही आज तो मेरा कल बनायेगा।

हजारों उलझने हैं राहों में और कोशिशें बेहिसाब
इसी का नाम है जिंदगी चलते रहिये जनाब

मेरे छात्र जीवन में मेरा प्रतियोगी प्रकाशन पूंजी न होने और वितरण कार्य अत्यधिक कठिन होने के कारण असफल हो गया था। अब आवश्यक पूंजी है और वितरण के लिए मार्केट प्लेस और सोशल मीडिया प्लेटफार्म भी।

                                                बहुत पहले बचपन में पता नहीं कब, कहां से अंग्रेजी की एक कविता इतनी अच्छी लगी कि याद हो गई। नेट आने के बाद जाना कि यह अमेरिकी लेखक Langston Hughes की प्रसिद्ध पोयम DREAMS है।

Hold fast to dreams
For if the dreams die
Life is a broken winged bird
That can not fly.

Hold fast to dreams
For when dreams go
Life is a barren field
Frozen with snow.

इन पंक्तियों ने मुझे अपने शौक को पूरा करने और सपनों के पीछे भागने प्रेरणा शक्ति दी।  किसी सेंटा का इंतजार कभी मत कीजिए। अपना सेंटा आप बनिये।

                                                अपनी इस यात्रा में मुझे इस बात का संतोष है कि मैंने व्यावसायिकता व अर्थ के पीछे अंधी दौड़ नहीं लगाई। जब भी थोड़ी सी पूंजी एकत्रित हुई, हमने उससे सदैव अच्छे कार्य करने की कोशिश की। एक कहावत है

जैसा बोओगे,वैसा ही काटोगे।
बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होए।

                                     इसीलिए मैंने सदैव अच्छा बोने का प्रयास किया। मैं अपनी कमाई का एक हिस्सा सद् कार्यों में लगाता रहा। 

घाटे पानी सब भरै, औघट भरे न कोय।
औघट घाट कबीर का, भरे सो निर्मल होय ।।

                                हमें किसी से कोई शिकायत नहीं है। सबका धन्यवाद है। जो मिला है उसी पर नजर है, आधा गिलास भरा है। आनन्द सदा वर्तमान में ही है भविष्य में नहीं।

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है
जिंदगी के कई और इम्तिहान अभी बाकी है
अभी तो नापी है मुठ्ठी भर ज़मीन हमने
आगे सारा आसमान अभी बाकी है।

आइए, पी पी पी और नेशन बिल्डिंग प्रोडक्ट्स की इस तीर्थ यात्रा में आप सब भी सहयात्री बनिए और जहां भी, जैसे भी रहिए राष्ट्र निर्माण में अपना हर संभव योगदान देते रहिए।

                                      जीवन एक अनवरत यात्रा है, रुकना नहीं है, चलना ही जिंदगी है, बहता पानी बनना है।

                          इस आलेख का शीर्षक कवि श्री शमशेर बहादुर सिंह की इसी नाम की कविता से साभार लिया गया है

                                                                    इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ आपका अपना                                          Sanjay Singh)img

                                                                               /// संजय कुमार सिंह /// 

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जैविक खादों, उर्वरकों का प्रयोग स्वस्थ्य के लिए लाभदायक

सदियों से हम जैविक खेती कर रहे थे किन्तु 50-60 साल पहले अधिकाधिक उत्पादन के पीछे अंधी दौड़ एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के क्षुद्र स्वार्थों के कारण रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का जमकर प्रयोग प्रारम्भ हुआ। इस कारण कुछ वर्षों तक तो उत्पादन बढ़ा पर जमीन तेजी से बंजर होने लगी और लागत बढ़ जाने से खेती महंगी होते जाने से किसान परेशान, अवसादग्रस्त व ऋणग्रस्त होकर खुदकशी करने लगे। अब देश में फिर से जैविक खेती की ओर लौटने की बात हर कोई कर रहा है।

हरे सोने पर चन्‍द अल्‍फ़ाज
मूक माटी व पौधों की कसक

गृहवाटिका के लिये रासायनिक खादों व कीटनाशकों की कत्तई आवश्यकता नहीं है। जैविक खादों उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग ही फूल, फल व सब्जी उत्पादन के लिये प्रकृति व मानव के लिये सर्वथा उपयुक्त है।

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चूँकि मिट्टी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है अतः इसके धीरे-धीरे बंजर होते जाने को हम अधिक गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। मिट्टी के पोषक तत्‍वों की प्रदाता होने के कारण करोड़ों लोगों की खाद्य निर्भरता व आजीविका इस पर निर्भर है। इसे तैयार होने में सैकड़ों वर्ष लगते हैं। इसे लैब या फैक्ट्री में नहीं तैयार किया जा सकता। मिट्टी अमूल्य है, इसका कोई विकल्प नहीं है। फिर भी मिट्टी के संरक्षण, स्वास्थ्य व रखरखाव में हम इस कदर लापरवाह क्यों हैं ?

अब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है कि पेड़-पौधों में भी हमारी तरह जान होती है। ये खाद्य, फल, फूल, लकड़ी, सुगंध, सौंदर्य, हरियाली जैसी ढेरों अमूल्य चीजें देने के साथ हमें जिन्दा रहने के लिये अनिवार्य प्राण वायु आक्सीजन देते हैं और प्रदूषण रोकते हैं। हमारा पूरा अस्तित्व ही इन पर निर्भर है। ये नहीं तो जीवन संभव ही नहीं।

प्रश्न है कि हम कैसा व्यवहार कर रहे हैं इनके साथ?

अपने पालतू कुत्ते को हर महीने हजारों का डॉग फूड खिला देते हैं पर हम पर पूरी तरह आश्रित मूक पौधों को एक बार थोड़ी-सी गोबर की खाद देने के बाद पानी के अलावा और कुछ भी नहीं देते जबकि गमलों की मिट्टी से पानी के जरिये अधिकांश पोषक तत्त्व बहते रहते हैं।

क्या आपको पता है कि विश्व के टॉप फिफ्टी सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से अधिकांश भारत के हैं?

पौधे सबसे अच्छे एयर प्यूरीफायर है। अगर हम इन्हें ठीक से खाना पानी नहीं देंगे तब काम करना कम या बन्द कर देंगे जिससे प्रदूषण की स्थिति और भयावह होती जायेगी। प्रत्येक पौधे को 14 अनिवार्य पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है। प्राइमरी  नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सेकेण्डरी  कैल्शियम, मैग्नेशियम, सल्फर माइक्रो न्यूट्रीयेन्ट बोरान, कॉपर, आयरन, जिंक, निकिल, क्लोरीन, मैगनीज, मॉलीबेडनम ।

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गोबर की खाद में केवल नाइट्रोजन ही ठीक मात्रा में होता है। फास्फोरस व पोटेशियम बहुत कम मात्रा में होते हैं जबकि अन्य पोषक तत्त्व तो होते ही नहीं। अधिक व गुणवत्तापूर्ण फल, फूल व सब्जी उत्पादन के लिये सभी 14 पोषक तत्त्व अनिवार्य हैं। शहरों में एक साल पुरानी सूखी गोबर की खाद मिल पाना भी टेढ़ी खीर है। 95 प्रतिशत वर्मी जो बाजार में बिक रही है वो वर्मी कम्पोस्ट है ही नहीं बल्कि कूड़ा है।

बाजार में ब्रांडेड प्लांट फूड्स बहुत कम हैं, और बड़े महंगे हैं। 95 प्रतिशत प्लांट फूड्स जो बाजार में बिक रहे है, उसे दो तीन सस्ते तत्त्वों को मिलाकर अनपढ़ या अल्पज्ञानी तैयार कर औने-पौने भाव पर बेच रहे हैं जिसमें पोषक तत्व न के बराबर होते हैं। फिर ये एक ही प्रकार के पोषक तत्व को पौधे के हर अवस्था में देने को कहते हैं जबकि पौधे की हर अवस्था पर अलग-अलग पोषक तत्त्व देने की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न फिर उठता है कि प्लांट फूड के इस दुष्चक्र व गड़बड़झाले को रोकेगा कौन? क्या आपकी गृहवाटिका की जिम्मेदारी भी सरकार ले? सारा कुछ सरकार पर डालकर उसे कोसकर व गरिया कर हल्के होने की प्रवृत्ति छोड़कर सीधे इस जीवन से जुडे़ मुद्दे पर सक्रियता दिखायें। हमें इस मुद्दे पर मुखर व प्रबल होना ही होगा क्योंकि ये सीधे हमसे, हमारे परिवार, समाज, राष्ट्र व पूरी पृथ्वी से जुड़ा जो है।

इतना सस्ता और कहाँ सौदा मिलेगा

बीज दो जमीन को तो पौधा मिलेगा।

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Plants Kick Out Pollutions

POLLUTIONS is the silent killer. It does not have immediate impact. That’s why many people feel that only false uproar is being created. Nothing is happening to them. But it has many deep effects on health such as problems like blood pressure, stress, depression, infection, slow growth, shrinking of heart, lungs etc. India has the top ten most polluted cities in the world.

According to pollution standards, the limit of pollution is measured by Air Quality Index. The upper limit of pollution level is 10 micrograms per cubic meter. Recently in London, when it rose to 20 micrograms per cubic meter, the British parliamentarians made a strong demand to declare a public health emergency.

The level of pollution in top ten cities in India has reached more than 350 micrograms per cubic meter, yet the governments, opposition and media of our country are silent on this vital subject because this topic does not attract vote count or TRP While according to the World Health Organization, pollution is one of the biggest cause of death in India.

Closed houses are 10-15 times more polluted than roads. With urbanization and increasing population, our houses have become smaller and denser. Due to these houses being built in the dense settlements, there is no cross-air ventilation due to which we do not get fresh air. We have forgotten the smell of open, fresh and pure air because we are locked in air conditioned rooms.

This closed air is harmful to our health which gives rise to respiratory diseases, allergies, headache, fatigue and other diseases. There are many such items in our daily living which keep on releasing toxic elements slowly in the air of our homes. Mosquito spray and repellant, cockroach spray, paint, varnish, carpet, freshener, scent, personal care products etc.

Apart from this, in today’s digital world, we are surrounded by electronic items from all sides, which are dissolving toxic gas in the air of our homes. The polluting factors are- building materials, carpets, polishes, chemicals, perfumes, dyes, paints, gases, dirt, dust etc. Due to these, polluting elements germs, viruses, fungi, allergens, molds, etc., flourish in the houses. Owing to these reasons sick building syndrome is emerged, which causes many types of allergies, headaches, diseases like dizziness, nervous system disorder, cancer etc. This environment is helpful in increasing many types of diseases and due to which death can also occur.

But now it is difficult to change these living habits, but the side effects caused by them can be reduced. There should be continuous circulation of clean air in the houses. Along with this, we should use such plants in the houses which absorb these poisonous gases and purify the air of the house by releasing oxygen. Some plants can be very useful for reducing toxic gases. These are called air purifier plants, NASA’s Clean Air Study has proved that some houseplants are the best to keep the air clean in the house. These plants act as a barrier between pollution and human health.

Green cover is the easiest way by which people can protect themselves from harmful pollution. NASA and NBRI has found some indoor plants to be surprisingly effective in absorbing pollution and purifying indoor air. These plants are more effective and beautiful than any artificial air purifier. To reduce indoor air pollution, there can be no other more appropriate way than using air purifier plants which are cheap, simple, beautiful, durable and more effective.

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पीपल्स पार्टिसिपेशन पब्लिकेशन: एक परिचय

पीपल्स पार्टिसिपेशन पब्लिकेशन: एक परिचय

पीपल्स पार्टिसिपेशन पब्लिकेशन द्वारा अनेक प्रकार के उत्पादों का प्रकाशन किया गया है।

हमारा मोटो है –  नेशन बिल्डिंग प्रोडक्ट्स

और हमारी टैग लाइन है

देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे।
अंधकार को क्यों धिक्कारें, अच्छा हो एक दिया जलाएं।।

                                                               सामान्यतया पब्लिकेशन को केवल किताबों से संबंधित मान लिया जाता हैए किंतु हमारा प्रयास है। More Than Just Book” किताबों के अतिरिक्त हम सिंथेटिक वॉल आर्टए वॉल फ्रेमए क्विक फिक्स डिस्प्लेए डैंगलर चार्टए डिस्प्ले बैनर आदि का भी प्रकाशन कर रहें हैं।

                                                           हमने नेशन बिल्डिंग प्रोडक्ट्स के नाम से एक वीडियो चैनल प्रारम्भ किया है जो यूट्यूब एंव एफ बीए क्रिएटिव स्टूडियो पर दिखाई देगा। हम नेशन बिल्डिंग प्रोडक्ट्स के नाम से एक नियमित ब्लॉनग लेखन भी कर रहे हैं जिसे आप वेबसाइट व ई-ब्लॉगर पर पढ़ सकते हैं।

                                                             आप हमारे प्रोडक्ट्स को हमारी वेबसाइट https://pppublication.com से क्रय कर सकते हैं। वहां आपको हमारे आगामी उत्पादों की झलक भी मिल जायेगी। आप अपने अनमोल सुझाव हमारी ईमेल  contact@pppublication पर या WhatsApp/SMS नंबर 81770 63533 पर भी दे सकते हैं।

                                                              पी पी पब्लिकेशन के सभी उत्पादों की विस्तृत जानकारी के लिए वेबसाइट पर विजिट करें। हमारे सारे उत्पाद राष्ट्र निर्माण को सशक्त करेंगे। किंतु हम उत्पाद प्रेरित न बन कर उपभोक्ता प्रेरित बनना चाहते हैं। हम थोथे व खोखले शब्दों और वादों से नहीं बल्कि अपने ठोस कार्यों से आपको प्रभावित करने का प्रयास करेंगे। पी पी पब्लिकेशन की इस तीर्थ यात्रा में आप सभी सहयात्री बनिए और जहां भीए जैसे भी रहिए राष्ट्र निर्माण में अपना हर संभव योगदान अवश्य देते रहिए ।

                                                                                                                                                                   – संजय कुमार सिंह

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