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काल तुझसे होड़ है मेरी

सौ बार पटखनी खाकर
मैं फिर एक बार
गर्द झाड़ कर
उठ खड़ा हुआ और
बोला फिर खम ठोंक कर
कोई बात नहीं
एक हार और सही!

सिविल सर्विसेज परीक्षाओं में असफल रहने के बाद मैं इलाहाबाद से लखनऊ आ गया। पैरेन्ट्स की कृपा से रहने व खाने की समस्या नहीं थी। कुछ महीनों तक अनेक समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन किया। मेरे अनेक आलेख (पूरे पेज व आधे पेज वाले) दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित हुए। किंतु पत्रकारिता जगत का माहौल रूचिकर न लगने के कारण 1996 में अपनी मां से मात्र 17000 रूपए लेकर व्यापार प्रारम्भ किया। जिसे मैंने उनको तीसरे महीने ही लौटा दिया।व्यापार में सफलता मिलने के बाद 2004 में हमने चिनहट इंडस्ट्रियल एरिया (टेल्को के पास) एक फैक्ट्री  स्थापित की।

                                                फैक्ट्री से जब कुछ और अधिक व्यावसायिक स्थिरता आई। तब लगा कि अब कुछ समाज के लिए किया जाए। प्लांट्स, पर्यावरण, प्रकृति आदि की ओर शुरू से रूझान था। इसीलिए 2014 में खरगापुर, गोमती नगर विस्तार में जन्नत नाम से एक नर्सरी  शुरू की। इसमें हम अधिकांश पौधे 10 रूपए या इससे कम में देते हैं। हमने जैविक बागवानी पर बल देने के लिए जैविक व शुद्ध प्लांट फूड भी उपलब्ध कराया। जन्नत नर्सरी में हमने आमजन को बढ़ते प्रदूषण से सचेत करने के लिए प्रदूषणरोधी पौधों (Air Purifier Plants) की स्थापना की। वहां आपको एक छत के नीचे 50 से भी अधिक प्रदूषणरोधी पौधे देखने को मिल सकते हैं साथ में उनसे संबंधित साहित्य भी। हमने धार्मिक व सांस्कृतिक पौधों (Religious and Cultural plants) की गैलरी भी बनाई। आपको लगभग सारे इस तरह के लोकप्रिय पौधे कम मूल्य पर मिल जायेंग

                                आम लोगों को बढ़ते प्रदूषण और बिगड़ते पर्यावरण के बारे मे जागरुक करने के लिए हमने दो  पुस्तकें लिखी Gardening Guide और Air Purifier Plants.

                                मैंने विद्यार्थी जीवन में चार किताबें लिखी थी जिनके अनेक संस्करण निकले थे। एक त्रैमासिक पत्रिका ‘‘प्रतियोगी’’ भी निकाली थी। जिसके दो अंक आये थे और जिसकी गुणवत्ता की चतुर्दिक प्रशंसा हुई थी। किंतु धनाभाव के कारण हम उसके और अंक नहीं निकाल सके। लखनऊ आकर मैंने अपनी इसी हॉबी को व्यवसाय बनाना चाहा था किंतु अनुकूल माहौल न पाकर व्यापार की ओर मुड़ गया था, किंतु मेरा यह शौक सदा जिंदा रहा और आज भी है। इसी कारण मैं लिखता रहा, पर्यावरण, उद्यान, पशुपालन, क़षि, प्रदूषण, शिक्षा आदि विषयों पर। पशुपालन व उद्यान पर अधिक लिखा क्योंकि मुझे लगता है कि इन दोनों में छोटी आय वाले लोग अधिक हैं और इनसे कम पूंजी लगाकर अच्छी आय अर्जित की जा सकती है।

                                                थोड़ा आर्थिक स्थायित्व आने के बाद मेरा यह पुराना शौक एक बार फिर जाग उठा। अब हमने अपने लेखन कार्यों के प्रकाशन के लिए एक संस्था People’s Participation Publication की स्थापना की है। हमारा मोटो है Nation Building Products है और हमारी tag line है।

देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।
अंधकार को क्यों धिक्कारे, अच्छा हो एक दिया जलाएं।।

सामान्यतया पब्लिकेशन को केवल किताबों से संबंधित मान लिया जाता है किंतु हमारा नारा है।

"More than just books"

किताबों के अतिरिक्त हम सिंथेटिक चार्ट, वॉल फ्रेम, बैनर, डेंगलर चार्ट, क्विक फिक्स डिस्प्ले आदि का भी प्रकाशन कर रहें हैं। हमारे प्रोडक्ट्स राष्ट्र निर्माण को सशक्त करेंगे। हम उत्पाद प्रेरित न बनकर उपभोक्ता प्रेरित बनना चाहते हैं। हम क्षणिक, खोखले, शब्दों और वायदों से नहीं, अपने ठोस कार्य से आपको प्रभावित करना चाहते हैं।

                                हमने पशुपालन, उद्यान, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, पर्यावरण, प्रदूषण, मिड डे मील, शिक्षा आदि पर हजारों सचित्र साहित्य वाला एक विशाल Literature Bank तैयार किया।  जिसे हम धीरे धीरे अपनी वेबसाइट पर डालेंगे ताकि यह सर्व सुलभ हो जाए।

                                                इसी कारण नेशन बिल्डिंग प्रो‍डक्‍ट  के नाम YouTube Channel भी चला रहें हैं जिसमें १०० से अधिक वीडियो उपलब्‍ध हैं । 

                                                हम सब कुछ सरकार पर डालने वाले समाज हैं जो की एक बड़ी विडंबना है और विकास में बाधक भी। हम उनसे आस व अपेक्षा कर रहे हैं जो कि एफिशिएंट व प्रोएक्टिव नहीं हैं और न ही उनकी सोच सकारात्मक है। उनके नीचे की जमीन हमेशा हिलती रहती है। सामान्यतया सरकारी लोगों में से अधिकांश उतना ही काम करना चाहते हैं जिससे उनकी नौकरी बची रहे या कुछ अतिरिक्त मिल रहा हो। क्या सरकार किसी बड़े बदलाव का वाहक बन सकती है?

                                                समाज को इसकी पहल करनी होगी, वही आधारभूत और टिकाऊ होगी। हम अपने मोहल्ले के नन्हें पार्क  के लिए भी सोचते हैं कि सरकार उसे मेंटेन करे जबकि हम रोज उसका उपयोग करते हैं। प्रदूषण, पर्यावरण, वृक्षारोपण, हरियाली आदि हम क्यों केवल सरकार पर ही आश्रित रहें? आखिरकार पर्यावरण को असंतुलित करने में हम भी तो भागीदार हैं (ए सी, फ्रिज, कम्प्यूटर आदि इलेक्ट्रिकल व इलेक्ट्रानिक्स गैजेट्स के द्वारा)।

                                                इस मामले में आई टी वाले बच्चे अच्छे हैं वो अपने रोजगार के लिए सरकार का मुंह नहीं देख रहे हैं। हमें जनता की सोच में परिवर्तन का प्रयास करना होगा ताकि वो सरकार पर ही निर्भर न बनी रहे बल्कि अपने दम पर भी कुछ करे। आज हमारा देश आई टी, फार्मा, स्पेसियल्‍टी  केमिकल्स आदि क्षेत्रों में विश्व में अग्रणी है और सबसे ज्यादा निर्यात से आय यहीं से आ रही है और इन क्षेत्रों में सरकार नहीं है।

                                एक बात बतानी है, हमारे नौजवान कहते हैं कि सरकारी नौकरी के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है क्योंकि हमारे पास धन नहीं है। मेरा निजी अनुभव है बिजनेस के लिए धन से अधिक सोच, संकल्प, श्रम और जज्बे की आवश्यकता होती है।

                                                असल में हम चाहते कि पहले दिन से हमें ए सी ऑफिस में pen pushing job मिल जाये। संघर्ष से बचना चाहते हैं। सुरक्षित दायरे से बाहर निकलने से डरते हैं। अकर्मण्य रहकर आज तक दुनिया में कोई बड़ा नहीं बना है।

No great person with easy past

                                                   असल में हम घर से निकलने से पहले सारे सिग्नल हरे होने का इंतजार करते हैं। कहीं मैं घोड़ा कुदाऊं कहीं मैं गिर न जाऊं ? परफेक्ट परिस्थितियां कभी नहीं मिलेगी। इसलिए उनका इंतजार बेवकूफी है।  हम काम शुरू होने के पहले ही सोचते हैं कि हमें अपनी मंजिल नजर आ जाये जबकि ऐसा होता नहीं है, जितना आगे दिखाई देता है, उतना आगे जाइए फिर और आपको आगे दिखाई देगा। आगे बढ़ते रहेंगे, तब मजिल करीब आती जाएगी। सही समय और अवसर किसी न किसी रूप में हमेशा आस-पास ही रहता है, बस सही नजर और जिगर चाहिए। अवसर बार बार नहीं आता, न ही प्रतीक्षा करता है, वह बर्फ के समान होता है इसलिए जब दिखाई दे झपट कर दोनों हाथ से पकड़ लीजिए। समस्या देखकर बिल्कुल न घबराएं, अक्‍सर अवसर समस्या की चादर ओढ़कर कर ही आता है। कई बार अवसर होते नहीं हैं, उनका निर्माण करना पड़ता है।

अंजाम उसके हाथ है आगाज करके देख
भीगे हुए परों से ही परवाज करके देख

कभी किसी को सफलता खतरा उठाए बिना मिली है क्या? सबसे बड़ा रिस्क कोई रिस्क न लेना है। जिंदगी में सबसे बड़ा खतरा यह होता है जब आप बहुत ज्यादा सतर्कता बरतने लगे। लंबे समय की खुशी के लिए क्या थोड़ी देर का दर्द बुरा है क्या? बॉडी बनानी है तो push up स्वयं लगाने होंगे, कोई और नहीं लगायेगा आपके बदले।

                                                कभी कभी लगता था कि मेरी योग्यता में कुछ कमी है लेकिन आज सफल होने के बाद लगता है कि मैं कितना गलत था। आप पल भर इस पर संदेह न करें, जितनी आवश्कता है उससे अधिक योग्य हैं आप।

                                                हमें बिजनेस शुरू करना चाहिए, साधन रास्ते में अपने आप मिलते जायेंगे। आप चलो तो सही रास्ते अपने आप बनते जायेंगे। पहली सीढ़ी पर खड़े होकर छत देखने की कोशिश न करें। जो शुरू में कठिन और बेतुका लगे वही काम का है। आपकी आज की कठिनाइयां कल की कहानियां बन सकती हैं।

                                माना कि पश्चिम की तरह हमारे यहां श्रम का महत्व नहीं है, फिर भी धीरे धीरे स्थिति बदल रही है। नई पीढ़ी को सरकार को ओर ताकना छोड़कर अपने पैरों पर खड़ा होना होगा,तभी हमारा देश विश्व में अग्रणी बन सकेगा।

Push yourself youngsters
because no one else is going to do it for you

अकेले चलने से डरिए मत क्योंकि जिनमें अकेले चलने का हौसला होता है, एक दिन उनके पीछे काफिला होता है। कुछ भाग्य का रोना रोकर बैठ जाते हैं जबकि भाग्य बार बार हमारे पुरूषार्थ की परीक्षा लेता है और इसे बदला भी जा सकता है। जब जरा सा प्रतिकूल समय आता है तब हम जल्दी घबरा जाते हैं, जीवन है ऊपर नीचे तो होगा ही। अच्छे दिनों में बौराएं नहीं और दुर्दिन में बौखलाए नहीं। बदलाव छोड़कर जीवन में और कुछ भी स्थायी नहीं है। अगर केवल आसानियां हों तो जिंदगी दुश्‍वार हो जाये।

                                                एक और कमी हमें दिखी कि हम पैसे पीछे दौड़ लगाते रहते हैं जबकि यदि हम काम के पीछे दौड़े तब पैसा आयेगा। पैसा अच्‍छे कार्य का बाय प्रोडक्‍ट है। हमें हर अच्छे काम को पूरे उमंग व जोश से करना चाहिए। जान लगा दो या जाने दो ।

                                                   अगर आप नयी चीजें सीखना बंद कर देंगें तो आप बड़ा काम अच्छी तरह से नहीं कर पाएंगें। जिज्ञासा और सीखने की ललक ग़ज़ब की होनी चाहिए।

If you are not upgrading, you are downgrading

                                                      कितना जानें उसका उतना फर्क़ नहीं पड़ता कितना क्रियान्वित किया, उसका फर्क़ पड़ता है.पर प्लानिंग बहुत जरूरी है, प्लानिंग में लगाया गया एक मिनट क्रियान्‍वयन के दस मिनट बचाता है.

                                                    कई बार हम अपने मन की नकारात्मकता को टांगने के लिए हुक ढूँढते रहते हैं। अपनी असफलता का ठीकरा दूसरों पर फोड़कर हम राहत महसूस करते हैं।

                                                बहुत कम लोगों के पास Midas Touch होता है यानी जिसे छू लेते हैं वह सोना हो जाता है। हम सबको कठोर परिश्रम करना पड़ता है। किसान जैसे खेत में एक साथ ढ़ेर सारे बीज डालता है जो न निकले उसकी परवाह नहीं करता, जो निकल आए उनका समय से पानी, खाद, दवा देकर उनका सतत ध्यान रखता है। फसल पकने का धैर्य पूर्वक इंतजार करता है, फिर उसे लाभ मिलता है।

                                अधिकांश लोग सफ़लता को जूस की मशीन समझते हैं कि इधर से फल डालें और उधर से जूस निकल आए और वो पीकर निकल लें। यह नहीं सोचते कि जिस फल का जूस वो पी रहे हैं, उसे पैदा करने में बागवान का कितना समय, श्रम, धन लगा है।

                                                हम संसाधन कम रहने पर बहुत बड़ा प्लान बना लेते हैं। अपने प्लान का गाना भी गाने लगते हैं जबकि काम शब्दों पर चढ़कर बोलता है। जीत रोज़ नहीं होती पर हर क्षण हम इस ओर चलें। बहानों को त्याग कर हर पल को श्रम से भर दें क्योंकि मेरा यही आज तो मेरा कल बनायेगा।

हजारों उलझने हैं राहों में और कोशिशें बेहिसाब
इसी का नाम है जिंदगी चलते रहिये जनाब

मेरे छात्र जीवन में मेरा प्रतियोगी प्रकाशन पूंजी न होने और वितरण कार्य अत्यधिक कठिन होने के कारण असफल हो गया था। अब आवश्यक पूंजी है और वितरण के लिए मार्केट प्लेस और सोशल मीडिया प्लेटफार्म भी।

                                                बहुत पहले बचपन में पता नहीं कब, कहां से अंग्रेजी की एक कविता इतनी अच्छी लगी कि याद हो गई। नेट आने के बाद जाना कि यह अमेरिकी लेखक Langston Hughes की प्रसिद्ध पोयम DREAMS है।

Hold fast to dreams
For if the dreams die
Life is a broken winged bird
That can not fly.

Hold fast to dreams
For when dreams go
Life is a barren field
Frozen with snow.

इन पंक्तियों ने मुझे अपने शौक को पूरा करने और सपनों के पीछे भागने प्रेरणा शक्ति दी।  किसी सेंटा का इंतजार कभी मत कीजिए। अपना सेंटा आप बनिये।

                                                अपनी इस यात्रा में मुझे इस बात का संतोष है कि मैंने व्यावसायिकता व अर्थ के पीछे अंधी दौड़ नहीं लगाई। जब भी थोड़ी सी पूंजी एकत्रित हुई, हमने उससे सदैव अच्छे कार्य करने की कोशिश की। एक कहावत है

जैसा बोओगे,वैसा ही काटोगे।
बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होए।

                                     इसीलिए मैंने सदैव अच्छा बोने का प्रयास किया। मैं अपनी कमाई का एक हिस्सा सद् कार्यों में लगाता रहा। 

घाटे पानी सब भरै, औघट भरे न कोय।
औघट घाट कबीर का, भरे सो निर्मल होय ।।

                                हमें किसी से कोई शिकायत नहीं है। सबका धन्यवाद है। जो मिला है उसी पर नजर है, आधा गिलास भरा है। आनन्द सदा वर्तमान में ही है भविष्य में नहीं।

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है
जिंदगी के कई और इम्तिहान अभी बाकी है
अभी तो नापी है मुठ्ठी भर ज़मीन हमने
आगे सारा आसमान अभी बाकी है।

आइए, पी पी पी और नेशन बिल्डिंग प्रोडक्ट्स की इस तीर्थ यात्रा में आप सब भी सहयात्री बनिए और जहां भी, जैसे भी रहिए राष्ट्र निर्माण में अपना हर संभव योगदान देते रहिए।

                                      जीवन एक अनवरत यात्रा है, रुकना नहीं है, चलना ही जिंदगी है, बहता पानी बनना है।

                          इस आलेख का शीर्षक कवि श्री शमशेर बहादुर सिंह की इसी नाम की कविता से साभार लिया गया है

                                                                    इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ आपका अपना                                          Sanjay Singh)img

                                                                               /// संजय कुमार सिंह /// 

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