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जैविक खादों, उर्वरकों का प्रयोग स्वस्थ्य के लिए लाभदायक

सदियों से हम जैविक खेती कर रहे थे किन्तु 50-60 साल पहले अधिकाधिक उत्पादन के पीछे अंधी दौड़ एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के क्षुद्र स्वार्थों के कारण रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का जमकर प्रयोग प्रारम्भ हुआ। इस कारण कुछ वर्षों तक तो उत्पादन बढ़ा पर जमीन तेजी से बंजर होने लगी और लागत बढ़ जाने से खेती महंगी होते जाने से किसान परेशान, अवसादग्रस्त व ऋणग्रस्त होकर खुदकशी करने लगे। अब देश में फिर से जैविक खेती की ओर लौटने की बात हर कोई कर रहा है।

हरे सोने पर चन्‍द अल्‍फ़ाज
मूक माटी व पौधों की कसक

गृहवाटिका के लिये रासायनिक खादों व कीटनाशकों की कत्तई आवश्यकता नहीं है। जैविक खादों उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग ही फूल, फल व सब्जी उत्पादन के लिये प्रकृति व मानव के लिये सर्वथा उपयुक्त है।

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चूँकि मिट्टी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है अतः इसके धीरे-धीरे बंजर होते जाने को हम अधिक गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। मिट्टी के पोषक तत्‍वों की प्रदाता होने के कारण करोड़ों लोगों की खाद्य निर्भरता व आजीविका इस पर निर्भर है। इसे तैयार होने में सैकड़ों वर्ष लगते हैं। इसे लैब या फैक्ट्री में नहीं तैयार किया जा सकता। मिट्टी अमूल्य है, इसका कोई विकल्प नहीं है। फिर भी मिट्टी के संरक्षण, स्वास्थ्य व रखरखाव में हम इस कदर लापरवाह क्यों हैं ?

अब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है कि पेड़-पौधों में भी हमारी तरह जान होती है। ये खाद्य, फल, फूल, लकड़ी, सुगंध, सौंदर्य, हरियाली जैसी ढेरों अमूल्य चीजें देने के साथ हमें जिन्दा रहने के लिये अनिवार्य प्राण वायु आक्सीजन देते हैं और प्रदूषण रोकते हैं। हमारा पूरा अस्तित्व ही इन पर निर्भर है। ये नहीं तो जीवन संभव ही नहीं।

प्रश्न है कि हम कैसा व्यवहार कर रहे हैं इनके साथ?

अपने पालतू कुत्ते को हर महीने हजारों का डॉग फूड खिला देते हैं पर हम पर पूरी तरह आश्रित मूक पौधों को एक बार थोड़ी-सी गोबर की खाद देने के बाद पानी के अलावा और कुछ भी नहीं देते जबकि गमलों की मिट्टी से पानी के जरिये अधिकांश पोषक तत्त्व बहते रहते हैं।

क्या आपको पता है कि विश्व के टॉप फिफ्टी सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से अधिकांश भारत के हैं?

पौधे सबसे अच्छे एयर प्यूरीफायर है। अगर हम इन्हें ठीक से खाना पानी नहीं देंगे तब काम करना कम या बन्द कर देंगे जिससे प्रदूषण की स्थिति और भयावह होती जायेगी। प्रत्येक पौधे को 14 अनिवार्य पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है। प्राइमरी  नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सेकेण्डरी  कैल्शियम, मैग्नेशियम, सल्फर माइक्रो न्यूट्रीयेन्ट बोरान, कॉपर, आयरन, जिंक, निकिल, क्लोरीन, मैगनीज, मॉलीबेडनम ।

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गोबर की खाद में केवल नाइट्रोजन ही ठीक मात्रा में होता है। फास्फोरस व पोटेशियम बहुत कम मात्रा में होते हैं जबकि अन्य पोषक तत्त्व तो होते ही नहीं। अधिक व गुणवत्तापूर्ण फल, फूल व सब्जी उत्पादन के लिये सभी 14 पोषक तत्त्व अनिवार्य हैं। शहरों में एक साल पुरानी सूखी गोबर की खाद मिल पाना भी टेढ़ी खीर है। 95 प्रतिशत वर्मी जो बाजार में बिक रही है वो वर्मी कम्पोस्ट है ही नहीं बल्कि कूड़ा है।

बाजार में ब्रांडेड प्लांट फूड्स बहुत कम हैं, और बड़े महंगे हैं। 95 प्रतिशत प्लांट फूड्स जो बाजार में बिक रहे है, उसे दो तीन सस्ते तत्त्वों को मिलाकर अनपढ़ या अल्पज्ञानी तैयार कर औने-पौने भाव पर बेच रहे हैं जिसमें पोषक तत्व न के बराबर होते हैं। फिर ये एक ही प्रकार के पोषक तत्व को पौधे के हर अवस्था में देने को कहते हैं जबकि पौधे की हर अवस्था पर अलग-अलग पोषक तत्त्व देने की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न फिर उठता है कि प्लांट फूड के इस दुष्चक्र व गड़बड़झाले को रोकेगा कौन? क्या आपकी गृहवाटिका की जिम्मेदारी भी सरकार ले? सारा कुछ सरकार पर डालकर उसे कोसकर व गरिया कर हल्के होने की प्रवृत्ति छोड़कर सीधे इस जीवन से जुडे़ मुद्दे पर सक्रियता दिखायें। हमें इस मुद्दे पर मुखर व प्रबल होना ही होगा क्योंकि ये सीधे हमसे, हमारे परिवार, समाज, राष्ट्र व पूरी पृथ्वी से जुड़ा जो है।

इतना सस्ता और कहाँ सौदा मिलेगा

बीज दो जमीन को तो पौधा मिलेगा।

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